गीता की विदाई: संघर्ष और उम्मीद की कहानी
गीता की विदाई: आसाम की हथनी गीता सिर्फ़ एक नाम नहीं, बल्कि साहस, संघर्ष और उम्मीद की प्रतीक थी। वनतारा उसकी देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी। हर दिन, हर लम्हा हमने उसकी पीड़ा को कम करने की कोशिश की, उसे स्नेह, देखभाल और दिलासा दिया। गीता का सफर आसान नहीं था, लेकिन उसने हर चुनौती का सामना अद्भुत धैर्य और साहस के साथ किया।
वनतारा का साथ, उसका आत्मबल
हमेशा उसके साथ वनतारा के विशेषयज्ञ खड़े रहे, हर कदम पर उम्मीद का दीप जलाए रखा। कभी हार नहीं मानी, क्योंकि गीता ने भी कभी हार नहीं मानी। उसकी जीवटता और धैर्य हम सभी के लिए प्रेरणा बन गए। जब वनतारा के विशेषयज्ञ उसे संभालते थे, तो लगता था मानो वनतारा के डॉक्टर किसी विशेष आत्मा के करीब हैं — एक ऐसी आत्मा जो मौन में भी बहुत कुछ कह जाती थी।
अंत जो दिल तोड़ गया
लेकिन जीवन के इस संघर्ष में, एक दिन ऐसा आया जब हम उसे खो बैठे। वह क्षण हमारे लिए बेहद पीड़ादायक था। उसकी अनुपस्थिति एक ऐसा खालीपन छोड़ गई है जिसे शब्दों में व्यक्त करना असंभव है। उसका जाना सिर्फ़ एक जीवन का अंत नहीं, एक युग की समाप्ति जैसा लगा।
यादें जो हमेशा साथ रहेंगी
गीता हमारे दिलों में हमेशा जीवित रहेगी। उसकी मासूम आंखें, शांत स्वभाव और संघर्षशील आत्मा की यादें कभी धुंधली नहीं होंगी। हम उसे बहुत प्यार करते थे — और हमेशा करते रहेंगे। उसका प्रभाव इतना गहरा है कि समय भी उसे मिटा नहीं सकता।
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कृतज्ञता और सम्मान
हम असम वन विभाग के हृदय से आभारी हैं, जिन्होंने वनतारा को गीता की देखभाल और सेवा का अवसर दिया। उनके सहयोग और समर्पण के बिना यह यात्रा संभव नहीं हो पाती। उनके साथ मिलकर काम करना गर्व की बात रही।
निष्कर्ष: गीता की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन चाहे जितना कठिन क्यों न हो, उम्मीद और प्रेम की ताकत से हर दुख को थोड़ी राहत मिल सकती है। उसकी यादें हमेशा हमारे साथ रहेंगी — एक स्नेहिल आत्मा के रूप में, जिसने हमें बहुत कुछ सिखाया।