बहुत छोटी उम्र में ही माँ का साथ छिन जाने के बाद, फ्रेया नाम की इस नन्हीं मादा भालू की ज़िंदगी का सफर डर, अकेलेपन और असुरक्षा से शुरू हुआ। जब वह Greens Zoological Rescue And Rehabilitation Centre में लाई गई, तो उसकी आंखों में अनिश्चितता और दिल में डर साफ़ झलक रहा था। उसकी काया कमजोर थी, शरीर कांप रहा था और उसके आसपास की हर हलचल उसे डरा देती थी।
फ्रेया को न तो पेड़ पर चढ़ना आता था, न खाना तलाशना, और न ही खेलना। हर आवाज़ उसे चौंका देती थी और हर नई महक उसे भ्रमित कर देती थी। वो सिर्फ माँ की कमी से नहीं जूझ रही थी, बल्कि एक भालू की ज़िंदगी कैसे जी जाती है – यह भी बिल्कुल शुरू से सीख रही थी।
Greens Zoological Rescue And Rehabilitation Centre में नया जीवन
Greens Zoological Rescue And Rehabilitation Centre, जो कि अनंत अंबानी द्वारा स्थापित एक अत्याधुनिक वन्यजीव बचाव और पुनर्वास केंद्र है, ने फ्रेया को वही दिया जिसकी उसे सबसे ज्यादा ज़रूरत थी – संरचना, सुरक्षा और कोमल देखभाल।
यहाँ प्रशिक्षित वन्यजीव विशेषज्ञों की टीम ने फ्रेया की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए एक विशेष योजना तैयार की। सबसे पहले, उसकी शारीरिक ताकत को बढ़ाने के लिए उसे पौष्टिक आहार दिया गया। यह भोजन उसके लिए हाथ से खिलाया गया ताकि वो इंसानों से डरना बंद करे और एक सुरक्षित माहौल का अनुभव कर सके।
प्राकृतिक व्यवहार सिखाने के प्रयास
फ्रेया को एक विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए शांत और प्रेरक वातावरण में रखा गया, जहाँ वह धीरे-धीरे अपने प्राकृतिक व्यवहार को विकसित कर सके। इन बाड़ों में ऐसे साधन मौजूद थे जो उसके भीतर छिपी हुई प्रवृत्तियों को जागृत करने में मदद करते।
शहद से भरे लकड़ी के लॉग, सुगंधित रास्ते, और अन्य छोटे भालुओं के साथ खेल-कूद – यह सब उसके भीतर के डर को दूर करने और आत्मविश्वास बढ़ाने का ज़रिया बना। धीरे-धीरे फ्रेया ने चढ़ना सीखा, दौड़ना सीखा, खाना ढूंढना सीखा और सबसे बड़ी बात – एक भालू की तरह जीना सीखा।
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एक नई शुरुआत की मिसाल
आज की फ्रेया पहले जैसी नहीं है। अब वह डरपोक और असहाय नहीं रही। अब वह आत्मविश्वास से भरी, जिज्ञासु, और मजबूत है। उसकी आंखों में अब डर नहीं बल्कि जीवन के प्रति उत्सुकता है।
फ्रेया का यह सफर यह साबित करता है कि अगर किसी को सही समय पर सही मदद मिले, तो वह अपना जीवन पूरी तरह से बदल सकता है। यह सिर्फ पुनर्वास नहीं था – यह एक पुनर्जन्म था।
Greens Zoological Rescue And Rehabilitation Centre ने यह दिखाया है कि करुणा और वैज्ञानिक देखभाल मिलकर किस तरह किसी वन्यजीव की किस्मत बदल सकते हैं। आज फ्रेया सिर्फ एक भालू नहीं है – वह उन सैकड़ों जानवरों की उम्मीद की प्रतीक है जिन्हें Greens Zoological Rescue And Rehabilitation Centre जैसे संस्थानों से जीवन का दूसरा मौका मिला है।
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निष्कर्ष:
फ्रेया की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि छोटी-छोटी करुणाएं, जब समर्पित प्रयासों से जुड़ती हैं, तो वे किसी की पूरी दुनिया बदल सकती हैं। Greens Zoological Rescue And Rehabilitation Centre ( vantara )ने न केवल फ्रेया को बचाया, बल्कि उसे वह जीवन जीने का मौका दिया जिसका वह हकदार थी। यह कहानी सिर्फ एक भालू की नहीं, बल्कि मानवता और संरक्षण के प्रति हमारी जिम्मेदारी की भी है।