Vantara और गुजरात वन विभाग मिलकर लाएंगे बन्नी में चित्तीदार हिरण, जैव विविधता को मिलेगा नया जीवन

📝 Last updated on: July 16, 2025 12:52 pm
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Vantara और गुजरात वन विभाग मिलकर कच्छ जिले के बन्नी घास के मैदानों में चित्तीदार हिरणों को बसाने जा रहे हैं, जिससे इस क्षेत्र की जैव विविधता को नया जीवन मिलेगा। यह प्रयास न सिर्फ वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक बड़ा कदम है, बल्कि एशिया के सबसे बड़े घासभूमि पारिस्थितिक तंत्र को फिर से जीवंत बनाने की दिशा में भी अहम साबित होगा।

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Vantara और गुजरात वन विभाग का साझा प्रयास

बन्नी घास के मैदानों में जैव विविधता को पुनर्स्थापित करने की इस पहल में, गुजरात वन विभाग को Vantara का महत्वपूर्ण सहयोग मिल रहा है। वंतारा, अनंत अंबानी द्वारा स्थापित एक प्रमुख वन्यजीव बचाव और संरक्षण पहल है, जो ग्रीन्स जूलॉजिकल, रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर के तहत कार्य करती है।

इस परियोजना के तहत, जामनगर स्थित वंतारा के पूर्व-स्थलीय संरक्षण केंद्र से कुल 20 चित्तीदार हिरणों को विशेष रूप से डिजाइन की गई आधुनिक एम्बुलेंसों में बन्नी लाया गया। इन्हें 70 हेक्टेयर में फैले एक संरक्षित और सुरक्षित क्षेत्र में छोड़ा गया है। इस पूरी प्रक्रिया को गुजरात वन विभाग की देखरेख में अंजाम दिया गया, जिसमें वंतारा की तकनीकी और लॉजिस्टिक टीम ने भी सक्रिय भागीदारी निभाई।

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संयुक्त मूल्यांकन से बनी रणनीति

इस कार्य के पहले चरण में, गुजरात वन विभाग और वंतारा के विशेषज्ञों की संयुक्त टीम ने बन्नी क्षेत्र का विस्तृत सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य यह था कि क्या यह क्षेत्र चित्तीदार हिरणों के लिए उपयुक्त है या नहीं। साथ ही, भविष्य में अन्य प्रजातियों के पुनर्स्थापन के लिए कौन-से पारिस्थितिक और भौगोलिक कारक मददगार होंगे – इस पर भी गहराई से विचार किया गया।

इस संयुक्त टीम में वन अधिकारी, वंतारा के अनुभवी वन्यजीव वैज्ञानिक, पशु चिकित्सक और क्षेत्रीय जैव विविधता विशेषज्ञ शामिल थे। यह सर्वेक्षण राज्य सरकार के दीर्घकालीन संरक्षण रोडमैप का हिस्सा है, जिसमें बन्नी को एक स्वस्थ और विविधता भरे पारिस्थितिक तंत्र के रूप में पुनर्जीवित करने का लक्ष्य रखा गया है।

वंतारा की भूमिका: तकनीक और विशेषज्ञता का सहयोग

Vantara की टीम ने इस पहल में न केवल जानवरों को स्थानांतरित करने में मदद की, बल्कि वैज्ञानिक मार्गदर्शन, पशु स्वास्थ्य परीक्षण, ट्रांसपोर्ट प्रबंधन और सुरक्षित छोड़ने की तकनीकी प्रक्रिया में भी अहम भूमिका निभाई। वंतारा का उद्देश्य केवल वन्यजीवों को बचाना नहीं है, बल्कि उन्हें उनके प्राकृतिक आवास में सुरक्षित रूप से पुनर्स्थापित करना भी है।

ग्रीन्स जूलॉजिकल, रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर के निदेशक डॉ. बृज किशोर गुप्ता ने इस पहल पर कहा,

“यह सहयोगात्मक संरक्षण मॉडल वैज्ञानिक दृष्टिकोण और प्रशासनिक सहयोग का बेहतरीन उदाहरण है। वंतारा और सरकार मिलकर प्रकृति को पुनर्जीवित करने में लगे हैं, जिससे भावी पीढ़ियों के लिए एक समृद्ध जैविक धरोहर सुरक्षित की जा सके।”

बन्नी घास के मैदान: एशिया का पारिस्थितिक रत्न

बन्नी घास के मैदान गुजरात के कच्छ जिले में स्थित हैं और लगभग 2,618 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं। यह क्षेत्र न केवल एशिया के सबसे बड़े घासभूमियों में से एक है, बल्कि इसकी पारिस्थितिक महत्ता भी अपार है। यहां विभिन्न प्रजातियों के पक्षी, स्तनधारी, सरीसृप और कीट पाए जाते हैं, जो इसे जैव विविधता का खजाना बनाते हैं।

एक हालिया सर्वेक्षण में इस क्षेत्र में 12 स्तनधारी प्रजातियों की पहचान की गई है, जिनमें 6 मांसाहारी और 2 शाकाहारी शामिल हैं। इनमें प्रमुख हैं – भारतीय हिरण, नीलगाय, सुनहरा सियार, धारीदार लकड़बग्घा, भारतीय भेड़िया और भारतीय लोमड़ी।

पारिस्थितिक सुधार और घास विकास की योजना

गुजरात वन विभाग वर्षों से बन्नी के पारिस्थितिक पुनरुत्थान में जुटा है। क्षरित क्षेत्रों को फिर से उपजाऊ बनाना, आक्रामक प्रजातियों का नियंत्रण करना और देशी घासों का विकास जैसे कदम इसमें शामिल हैं। वन विभाग का उद्देश्य बन्नी को उसकी पारंपरिक जैव विविधता के रूप में फिर से विकसित करना है, जहां वन्यजीवों के लिए भरपूर प्राकृतिक संसाधन मौजूद हों।

चित्तीदार हिरणों का आगमन इस दिशा में एक सकारात्मक संकेत है। ये हिरण सिर्फ एक प्रजाति नहीं, बल्कि पूरी खाद्य श्रृंखला का हिस्सा हैं और इनके आने से पारिस्थितिक तंत्र में संतुलन स्थापित होगा।

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एक नई शुरुआत की ओर

बन्नी घासभूमि में चित्तीदार हिरणों को पुनर्स्थापित करना केवल एक परियोजना नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने का एक सुंदर प्रयास है। यह पहल दर्शाती है कि अगर सरकार, विशेषज्ञ और निजी संगठन जैसे Vantara मिलकर काम करें, तो बड़े से बड़ा पारिस्थितिक परिवर्तन भी संभव है।

इस सहयोग के माध्यम से न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी को संजीवनी मिलेगी, बल्कि यह भारत के अन्य क्षेत्रों के लिए भी एक आदर्श मॉडल बनेगा। आने वाले वर्षों में वंतारा और गुजरात वन विभाग की यह साझेदारी और भी वन्यजीव प्रजातियों के लिए राहत लेकर आएगी।

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निष्कर्ष

Vantara और गुजरात वन विभाग की इस पहल ने यह साबित कर दिया है कि वन्यजीव संरक्षण केवल सरकारी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि एक सामूहिक दायित्व है। चित्तीदार हिरणों को बन्नी में बसाना एक प्रतीक है उस समर्पण का, जो प्रकृति के पुनरुत्थान की ओर बढ़ रहा है। अगर ऐसे प्रयास निरंतर जारी रहे, तो आने वाला कल निश्चित ही भारत की प्राकृतिक विरासत के लिए उज्ज्वल होगा।

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