वंतारा: 36 वर्षीय मादा हाथिनी महादेवी (जिसे माधुरी भी कहा जाता है) की एक नई जिंदगी की शुरुआत हो चुकी है। महाराष्ट्र के कोल्हापुर स्थित एक धार्मिक मठ से उसे गुजरात के जामनगर स्थित वंतारा एनिमल वेलफेयर सेंटर में स्थानांतरित किया गया है। यह कदम न केवल कानूनी और नैतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसने पशु कल्याण को धार्मिक परंपराओं से ऊपर रखकर एक नई दिशा दिखाई है।
गाँव वालों और श्रद्धालुओं की भावनात्मक विदाई
सोमवार शाम को कोल्हापुर जिले के करवीर तहसील स्थित नंदनी गांव में एक भावनात्मक दृश्य देखने को मिला। वर्षों से महादेवी को अपने धार्मिक आयोजनों और दैनिक जीवन का हिस्सा मान चुके श्रद्धालु और गाँववाले बड़ी संख्या में एकत्र हुए और नम आंखों से उसे विदा किया।
महादेवी लंबे समय से स्वस्थिश्री जिनसेन भट्टारक पत्ताचार्य महास्वामी संस्था के मठ में रह रही थी, जहाँ वह धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा बनी रही।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: पशु के अधिकार को प्राथमिकता
महादेवी का यह स्थानांतरण कोई आसान निर्णय नहीं था। कोल्हापुर स्थित मठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें हाई पावर्ड कमेटी (HPC) की सिफारिशों के आधार पर हाथिनी को वंतारा भेजने का निर्देश दिया गया था।
16 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने दो टूक कहा कि किसी हाथी के जीवन की गुणवत्ता का अधिकार, धार्मिक परंपराओं में उसके उपयोग के अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण है। जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और नील गोकले की पीठ ने माना कि हाथिनी की मानसिक और शारीरिक स्थिति मठ में रहने के दौरान बिगड़ गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने मठ की याचिका खारिज करते हुए यह सुनिश्चित किया कि महादेवी को जल्द से जल्द वंतारा जामनगर में स्थानांतरित किया जाए, जहाँ उसकी देखभाल के लिए उपयुक्त सुविधाएं मौजूद हैं।
वर्षों का दर्द और उपेक्षा
महादेवी केवल तीन साल की थी जब उसे मठ लाया गया था। तब से अब तक, उसने अपने जीवन का अधिकांश समय जंजीरों में, अकेलेपन और सीमेंट के फर्श पर बिताया। उसकी शारीरिक स्थिति धीरे-धीरे बिगड़ती रही। उसे गठिया (arthritis), पैर की फुंसी, बढ़े हुए नाखून और अन्य दर्दनाक समस्याएं हो गई थीं।
2017 में एक दुखद घटना के दौरान, महादेवी ने मठ के मुख्य पुजारी को दीवार पर पटक-पटक कर मार डाला था। उसके बाद से उसे और ज्यादा अकेलेपन में रखा गया, जिससे उसकी मानसिक स्थिति और बिगड़ गई।
PETA और अन्य संस्थाओं की भूमिका
पेटा इंडिया (PETA India) और FIAPO (Federation of Indian Animal Protection Organizations) जैसी पशु अधिकार संस्थाओं ने महादेवी की स्थिति को लेकर महाराष्ट्र वन विभाग और उच्चस्तरीय समिति को रिपोर्ट भेजी। जून 2024 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में उसके खान-पान, देखभाल, चिकित्सा और आवास की स्थिति को ‘बेहद खराब’ बताया गया था।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि महादेवी के शरीर पर “घावयुक्त घिसाव” थे, जो लंबे समय से बंधे रहने और अस्वस्थ स्थिति में रहने के कारण हुए थे।
वंतारा जामनगर में एक नई शुरुआत
अब महादेवी को Vantara Jamnagar में वह सब मिलेगा जो वह वर्षों से तरसती रही — आजादी, देखभाल, साथी और सम्मान।
यहां उसे अन्य हाथियों के साथ रहने का अवसर मिलेगा, और उसकी चिकित्सा जरूरतों का ख्याल विश्व-स्तरीय डॉक्टरों द्वारा रखा जाएगा। हाइड्रोथेरेपी जैसी आधुनिक तकनीकों से उसके गठिया की समस्या का इलाज किया जाएगा।
पेटा इंडिया की डायरेक्टर ऑफ एडवोकेसी प्रोजेक्ट्स खुशबू गुप्ता ने कहा,
“हाथी अत्यधिक संवेदनशील और सामाजिक प्राणी होते हैं। उन्हें बिना जंजीरों, डर और हथियारों के जीवन जीने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक ऐतिहासिक कदम है।”
धार्मिक परंपराओं के लिए यांत्रिक हाथियों का सुझाव
पशु कल्याण को बनाए रखते हुए धार्मिक परंपराओं को भी निभाया जा सकता है — इसी सोच के साथ PETA और FIAPO ने मठ को मैकेनिकल हाथी भेंट करने का प्रस्ताव दिया है, ताकि अनुष्ठान भी हों और किसी जीवित जानवर को कष्ट भी न हो।
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निष्कर्ष
महादेवी की यह यात्रा केवल एक हाथिनी की कहानी नहीं है, यह पूरे देश के लिए एक जागरूकता की मिसाल है। Vantara Jamnagar में उसका स्वागत, यह दर्शाता है कि जब परंपरा और करुणा में टकराव होता है, तो इंसानियत को चुनना ही सही रास्ता है।
अब महादेवी एक दर्दभरे अतीत को पीछे छोड़कर, एक स्वस्थ, आज़ाद और सम्मानजनक जीवन की ओर बढ़ रही है।