Gandhi Sagar: भारत अपनी वन्यजीव संरक्षण परियोजना के तहत बोत्सवाना से आठ चीतों को लाने की तैयारी कर रहा है। अधिकारियों के अनुसार, यह प्रक्रिया दो चरणों में पूरी की जाएगी, जिसमें पहले चार चीते मई 2025 तक भारत पहुंच जाएंगे। इस पहल का उद्देश्य भारत में चीता संरक्षण और प्रजनन को बढ़ावा देना है।
Project Cheetah in Hindi
इससे पहले भारत सरकार ने ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क (KNP) में बसाया है। वर्तमान में वहां कुल 26 चीते हैं, जिनमें 14 भारत में जन्मे शावक शामिल हैं। इनमें से 16 खुले जंगल में विचरण कर रहे हैं, जबकि 10 को पुनर्वास केंद्रों में रखा गया है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के अनुसार, दक्षिण अफ्रीका, बोत्सवाना और केन्या से और अधिक चीतों को लाने के प्रयास जारी हैं। भारत और केन्या के बीच इस संबंध में एक समझौते पर भी बातचीत हो रही है।
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Gandhi Sagar में दौड़ेंगे चीते
इसके अलावा, चीतों को चरणबद्ध तरीके से गांधी सागर अभयारण्य में स्थानांतरित करने की योजना भी तैयार की गई है। यह अभयारण्य राजस्थान की सीमा से सटा है, इसलिए दोनों राज्यों के बीच एक अंतरराज्यीय चीता संरक्षण क्षेत्र बनाने की सैद्धांतिक सहमति भी बन गई है। अब तक ‘प्रोजेक्ट चीता’ पर 112 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुके हैं, जिनमें से 67% मध्य प्रदेश में ही खर्च किए गए हैं।
‘चीता मित्रों’ को दिया जाएगा विशेष प्रशिक्षण

‘चीता मित्रों’ को विशेष प्रशिक्षण देकर उनकी क्षमता बढ़ाई जा रही है, ताकि वे कुनो और गांधी सागर अभयारण्यों में चीतों की निगरानी और देखभाल में मदद कर सकें। 24 घंटे निगरानी के लिए ‘सैटेलाइट कॉलर आईडी’ का भी उपयोग किया जा रहा है। मादा चीताओं—ज्वाला, आशा, गामिनी और वीरा—द्वारा शावकों को जन्म दिया गया है, जो परियोजना की सफलता का संकेत है। साथ ही, पर्यटन को भी बढ़ावा मिला है और केएनपी में पर्यटकों की संख्या पिछले दो वर्षों में दोगुनी हो गई है।
राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है, जिससे कुनो में चीता सफारी शुरू करने की अनुमति प्राप्त की जा सके। इसका उद्देश्य पर्यटन और संरक्षण दोनों को संतुलित रूप से बढ़ावा देना है।
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निष्कर्ष:
भारत में चीता पुनर्वास और संरक्षण की यह परियोजना न केवल विलुप्त हो चुके प्रजातियों की वापसी का प्रतीक है, बल्कि वन्यजीव पर्यटन, पर्यावरणीय संतुलन और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का भी एक उत्कृष्ट उदाहरण बन रही है। बोत्सवाना से आने वाले नए चीतों के साथ, यह पहल और भी मजबूत होगी और भारत के जैव विविधता संरक्षण प्रयासों को वैश्विक मानचित्र पर नई पहचान मिलेगी।