MP में शुरू हुआ देश का पहला “टाइगर ट्रेनिंग सेंटर’ , यहा से ट्रेनिंग लके बाघ बनते हैं जंगल के राजा

📝 Last updated on: April 22, 2025 12:22 pm
टाइगर ट्रेनिंग सेंटर

टाइगर ट्रेनिंग सेंटर: क्या आपने कभी सोचा है कि बाघों को भी ट्रेनिंग दी जाती है? सुनने में अजीब जरूर लगता है, लेकिन ये हकीकत है। मध्यप्रदेश के मंडला जिले में स्थित कान्हा नेशनल पार्क में देश का पहला टाइगर रिवाइल्डिंग सेंटर है, जिसे हम ‘टाइगर ट्रेनिंग स्कूल’ भी कह सकते हैं। यहां घायल और अनाथ बाघ शावकों को जंगल में जीने और शिकार करने की ट्रेनिंग दी जाती है।

टाइगर ट्रेनिंग सेंटर कहां है?

यह सेंटर कान्हा-मुक्की मार्ग के पास घोरेला मैदान में बना है, जहां कभी एक गांव था जिसे विस्थापित कर दिया गया था। यहां दो बड़े बाड़े हैं — एक में वयस्क बाघ रहते हैं और दूसरे में शावक। इनकी गतिविधियों पर CCTV और विशेषज्ञों की निगरानी में लगातार नजर रखी जाती है।

अब तक 14 बाघ बन चुके हैं जंगल के किंग

टाइगर ट्रेनिंग सेंटर

कान्हा के इस सेंटर में अब तक 14 बाघों को ट्रेनिंग देकर जंगल में छोड़ा जा चुका है, और ये सभी अब स्वतंत्र रूप से जंगल में जीवन जी रहे हैं। फिलहाल यहां 3 बाघ शावकों की ट्रेनिंग चल रही है, जिन्हें धीरे-धीरे जंगल के माहौल में ढाला जा रहा है।

कैसे होती है बाघ की ट्रेनिंग?

  1. शिकार की कला सिखाई जाती है।
  2. ट्रेनिंग का मापदंड: 60 चीतल का शिकार।

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1. शिकार की कला सिखाई जाती है

यह सेंटर 2005 में शुरू हुआ था, जब तीन अनाथ बाघ शावकों की माँ की मृत्यु हो गई थी। शावकों को पहले दूध, फिर मांस और फिर धीरे-धीरे जिंदा मुर्गा, बकरा और अंत में चीतल का शिकार करना सिखाया गया।

जब ये बाघ शावक खुद से शिकार करने लगे और इंसानों से दूरी बनाने लगे, तब इन्हें जंगल में छोड़ दिया गया।

2. ट्रेनिंग का मापदंड: 60 चीतल का शिकार

डॉ. संदीप अग्रवाल, जो इस सेंटर के प्रमुख वन्यप्राणी चिकित्सक हैं, बताते हैं कि जब एक बाघ शावक 60 चीतलों का सफलतापूर्वक शिकार कर लेता है, तब उसे जंगल में छोड़ने लायक माना जाता है।

इस प्रक्रिया से बाघों को पिंजरे में जीवन बिताने से बचाया जाता है, और देश के टाइगर रिज़र्व में फीमेल टाइगर की डिमांड पूरी होती है जिससे प्रजनन में मदद मिलती है।

3. अभी की स्थिति: तीन शावक ट्रेनिंग में

2024 में दो नए बाघ शावकों को भोपाल के वन विहार से यहां लाया गया, जो अब करीब 15-16 महीने के हैं। इनका पालन-पोषण और ट्रेनिंग लगभग 1.5 साल तक चलेगी। इनमें से एक अब वयस्क हो चुका है और जल्द ही जंगल में छोड़ने की तैयारी में है।

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4. देश के लिए गर्व की बात

कान्हा का यह टाइगर ट्रेनिंग सेंटर न सिर्फ देश में पहला है, बल्कि कई और राज्यों ने अब इसी मॉडल पर अपने रिवाइल्डिंग सेंटर शुरू किए हैं। यह पहल न केवल बाघों के संरक्षण में मदद करती है, बल्कि जंगल के संतुलन को बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभा रही है।

Conclusion

कान्हा का टाइगर रिवाइल्डिंग सेंटर देश में बाघ संरक्षण की दिशा में एक अनोखी और सफल पहल है। यहां अनाथ व घायल बाघ शावकों को जंगल में जीने की ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे वे स्वतंत्र जीवन जी सकें। यह मॉडल देशभर में बाघ संरक्षण का प्रेरणास्त्रोत बन रहा है।